लोन नहीं भरने पर ग्राहकों को मिलते है ये स्पेशल अधिकार, बस लोगों को नहीं है जानकारी

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नई दिल्ली :- आजकल लोगों की ज़रूरतें बढ़ रही हैं और ऐसे में लोन लेना एक आम बात हो गई है। चाहे वो घर खरीदने के लिए हो, शिक्षा के लिए या फिर व्यवसाय शुरू करने के लिए, बैंक आसान किस्तों में लोन देते हैं। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि किसी वजह से हम समय पर ईएमआई (EMI) नहीं चुका पाते।

ऐसे में घबराएं नहीं, क्योंकि बैंक कार्रवाई करने से पहले कुछ नियमों का पालन करते हैं — और आपके भी कुछ कानूनी अधिकार होते हैं जिन्हें जानना बेहद ज़रूरी है।

ग्राहकों के प्रमुख अधिकार:

1. बैंक से बातचीत करने का अधिकार

अगर आप समय पर लोन नहीं चुका पा रहे हैं, तो आप बैंक से मिलकर अपनी स्थिति बता सकते हैं। बातचीत हमेशा लिखित रूप में (जैसे ईमेल या पत्र) करें। आप:

  • पेनल्टी के साथ कुछ अतिरिक्त समय मांग सकते हैं (अधिकतम 90 दिन)

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  • बैंक से लोन को री-स्ट्रक्चर करने की गुज़ारिश कर सकते हैं ताकि EMI कम हो जाए और अवधि बढ़ जाए

2. सम्मान का अधिकार

कोई भी बैंक, ग्राहक के साथ बुरा व्यवहार नहीं कर सकता। अगर कोई वसूली एजेंट या बैंक अधिकारी दुर्व्यवहार करता है, तो आप शिकायत दर्ज करा सकते हैं। आरबीआई के नियमों के मुताबिक:

  • वसूली एजेंट ग्राहक को डराने या धमकाने का काम नहीं कर सकते

  • वसूली के लिए आने वाला एजेंट कौन है, इसकी जानकारी बैंक को ग्राहक को देनी होती है

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3. संपत्ति के उचित मूल्यांकन का अधिकार

अगर लोन न चुकाने पर बैंक आपकी संपत्ति ज़ब्त करता है, तो वह संपत्ति का उचित मूल्यांकन करना ज़रूरी है। ग्राहक को उसकी संपत्ति का उचित दाम पता होना चाहिए।

क्या करें जब लोन चुकाना मुश्किल हो?

EMI देना बंद न करें:

अगर कुछ किश्तें छूट भी गई हैं, तो अगली EMI देने की कोशिश करें। आप अपनी बचत, एफडी या म्यूचुअल फंड से पैसे निकाल सकते हैं।
जरूरत पड़े तो किसी रिश्तेदार या दोस्त से मदद लें।

गिरवी रखने का विकल्प:

अगर लगातार 180 दिन तक लोन की किश्तें नहीं दी जातीं, तो बैंक आपकी संपत्ति जब्त कर सकता है। इससे पहले आप बैंक से बात कर कोई संपत्ति गिरवी रखने का विकल्प भी चुन सकते हैं ताकि वसूली रोकी जा सके।

ध्यान रखें:

  • बैंक आपके खिलाफ तुरंत कानूनी कार्रवाई नहीं करता, बल्कि समय और मौका देता है

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  • यदि आपकी ईमानदार कोशिश चल रही है, तो बैंक भी समाधान के लिए आगे आता है

  • सही जानकारी रखें और डरने की बजाय बैंक से खुलकर बात करें

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